८५ वर्ष की अखंड ज्योति : पत्रकारिता के अमृत पुरुष एस.एन. विनोद

Khozmaster
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८५ वर्ष की अखंड ज्योति : पत्रकारिता के अमृत पुरुष एस.एन. विनोद

नागपुर, १ नवम्बर २०२५

पत्रकारिता कोई पेशा नहीं — यह एक तप है, एक साधना है, एक जिम्मेदारी है।

और इस साधना के परम साधक हैं श्री एस.एन. विनोद — वह नाम जिसने कलम को जनचेतना की आवाज़ बनाया, और सत्य को शब्दों का रूप दिया।

आज जब पत्रकार क्लब ऑफ नागपुर ने उनके ८५वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में “एस.एन. विनोद स्मारिका” का भव्य विमोचन किया, तो यह आयोजन केवल एक व्यक्ति का सम्मान नहीं था — यह उस पूरी पत्रकारिता परंपरा का उत्सव था, जो विचार, साहस और संवेदना पर टिकी है।

एक युग का उत्सव, एक व्यक्तित्व की गाथा

स्मारिका के विमोचन अवसर पर शहर की पत्रकारिता बिरादरी, वरिष्ठ संपादक, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

कार्यक्रम के दौरान पत्रकार क्लब ऑफ नागपुर के सभागार में उस युग की झलक दिखाई दी — जब पत्रकारिता में निडरता, निष्पक्षता और जनसरोकार सर्वोच्च मूल्य थे।

नितिन गडकरी की भावनात्मक उपस्थिति

स्मारिका के विमोचन समारोह की विशेषता रही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की उपस्थिति।

उन्होंने इस अवसर पर विनोद जी के साथ बिताए पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि —

> “विनोद जी के साथ मेरा रिश्ता पत्रकार और राजनेता का नहीं, बल्कि आत्मीय संवाद का रहा है। उन्होंने हमेशा समाज और राजनीति के सच को निर्भीक होकर सामने रखा। उनकी पत्रकारिता ने हमें सोचने पर मजबूर किया और दिशा भी दी।”

गडकरी ने यह भी कहा कि एस.एन. विनोद ने पत्रकारिता में जिस साहस और ईमानदारी का परिचय दिया, वह आज भी प्रेरणा है।

उन्होंने उनके दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए कहा

> “हम सबके लिए यह सौभाग्य है कि नागपुर जैसी नगरी में हमें विनोद जी जैसे आदर्श संपादक का सान्निध्य मिला।”


शब्दों से समाज गढ़ने वाला शिल्पकार

एस.एन. विनोद का जन्म बिहार की उस भूमि पर हुआ जहाँ लेखन और संघर्ष समानार्थी थे।

पटना के सचर्लाइट और देश जैसे अखबारों से मिली प्रेरणा ने उन्हें बाल्यावस्था से ही कलम का साधक बना दिया।

सिर्फ २० वर्ष की आयु में उन्होंने स्वतंत्रता पत्रिका का संपादन संभाला — वह युग जब पत्रकारिता में अनुभव नहीं, ईमानदारी और दृष्टि मायने रखती थी।

उनके संपादकीय लेखों में सत्य की आंच है और अभिव्यक्ति में एक ऐसी निडरता — जो सत्ताओं को आईना दिखाती है।

वे कहते है —

> “पत्रकार का धर्म है सच को सच कहना, चाहे वह किसी के भी खिलाफ क्यों न हो।”

निडरता उनका दूसरा नाम

एस.एन. विनोद की कलम कभी किसी सत्ता या प्रतिष्ठान के आगे नहीं झुकी।

पुण्य प्रसून वाजपेयी ने स्मारिका में लिखा

> “८५ की उम्र में भी एस.एन. विनोद सत्ता से सवाल करने की ताकत रखते हैं। वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जब संपादक केवल कुर्सी पर नहीं, बल्कि जनमत के मंच पर बैठता था।”

उनकी लेखनी का लक्ष्य आलोचना नहीं, जागृति था — और यही उन्हें समकालीन पत्रकारों से अलग बनाता है।

नागपुर में पत्रकारिता का नवजागरण

जब उन्होंने नागपुर आकर लोकमत समाचार की बागडोर संभाली, तब हिंदी पत्रकारिता को एक नया आयाम मिला।

१९८९ से १९९३ के बीच नागपुर की पत्रकारिता एक नये आत्मविश्वास से भरी दिखाई दी।

उनकी संपादकीय शैली इतनी प्रभावशाली थी कि कई बार लोकमत समाचार के संपादकीय विधानसभाओं में उद्धृत किए जाते थे।

नीलकंठ भारत ने लिखा —

> “विनोद जी ने लोकमत समाचार को नागपुर की सीमाओं से निकालकर महाराष्ट्र की आवाज़ बना दिया।”

स्मारिका’ – स्मृति नहीं, प्रेरणा

“८५ साल की अनंत यात्रा” शीर्षक से प्रकाशित इस स्मारिका में उनके जीवन, विचार, और योगदान पर देशभर के वरिष्ठ पत्रकारों ने लिखा है —

संतोष भारतीय, कृपाशंकर दुबे, डॉ. संतोष मानव, नीरज श्रीवास्तव, हर्षवर्धन अय्यर सहित कई कलमकारों ने विनोद जी को “पत्रकारिता का अमृत पुरुष” बताया है।

हर आलेख में एक ही स्वर है — विनोद जी सिर्फ एक संपादक नहीं, बल्कि पत्रकारिता का विश्वविद्यालय हैं।

नई पीढ़ी के लिए प्रकाशपुंज

डिजिटल युग में भी एस.एन. विनोद ने पत्रकारिता के मूल्यों को जीवित रखा।

उन्होंने कहा  —

> “तकनीक बदल सकती है, पर पत्रकारिता की आत्मा नहीं। जब तक सवाल ज़िंदा हैं, तब तक पत्रकारिता ज़िंदा है।”

वह आज भी युवा पत्रकारों के लिए प्रेरणा हैं — एक ऐसे मार्गदर्शक जो सिखाते हैं कि “सत्य का पक्ष लेना कभी पुराना नहीं होता।”

कृतज्ञता की अनंत रोशनी

स्मारिका के विमोचन के समय उनकी आँखों में विनम्रता और संतोष का उजाला था।

उन्होंने कहा —

“यह सम्मान मेरा नहीं, उस पत्रकारिता का है जो अब भी सच्चाई की लौ जलाए हुए है। मेरी कामना है कि आने वाली पीढ़ियाँ इस लौको कभी बुझने न दें।”

पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर उठा — वह क्षण केवल जन्मदिन नहीं था, वह एक युग का उत्सव था।

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