“मां, मैंने चोरी नहीं की” — चिप्स चोरी के आरोप से आहत 13 वर्षीय छात्र ने की आत्महत्या, सुसाइड नोट ने देश को किया भावुक

Khozmaster
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“मां, मैंने चोरी नहीं की” — चिप्स चोरी के आरोप से आहत 13 वर्षीय छात्र ने की आत्महत्या, सुसाइड नोट ने देश को किया भावुक

— विशेष रिपोर्ट, पांस्कुरा, पश्चिम मिदनापुर (पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले के पांस्कुरा कस्बे में एक बेहद दर्दनाक और संवेदनशील घटना सामने आई है। एक 13 वर्षीय स्कूली छात्र ने केवल इसलिए अपनी जान दे दी क्योंकि उस पर एक चिप्स का पैकेट चुराने का आरोप लगा था। घटना ने पूरे राज्य में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ा दी है।

मृतक, जो कि सातवीं कक्षा का छात्र था, को एक स्थानीय दुकान से चिप्स चोरी करने के संदेह में सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। इस अपमान से मानसिक रूप से टूटकर उसने कथित रूप से कीटनाशक पी लिया। इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई।

मरने से पहले छात्र ने अपनी मां के नाम एक मार्मिक सुसाइड नोट लिखा, जिसमें उसने कहा, “मां, मैंने चोरी नहीं की।” यह छोटी सी पंक्ति एक बच्चे की टूटी हुई आत्मा की चीख बनकर उभरी है।

परिवार में मातम, स्थानीय लोगों में गुस्सा

लड़के के माता-पिता, शिक्षक और पड़ोसी उसे एक होनहार और विनम्र छात्र के रूप में याद करते हैं। मां का कहना है, “मेरा बेटा चोरी नहीं कर सकता था। समाज ने उसके आत्म-सम्मान को कुचल दिया। उसे न्याय मिलना चाहिए।”

घटना के बाद स्थानीय लोगों में गुस्सा है। कई संगठनों ने दुकानदार और कथित आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

पुलिस जांच जारी, बाल अधिकार आयोग ने ली जानकारी

पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है। अधिकारियों के अनुसार, लड़के की मौत आत्महत्या प्रतीत होती है, लेकिन वे सभी पहलुओं की जांच कर रहे हैं। बाल अधिकार आयोग ने भी इस मामले पर संज्ञान लिया है और प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है।

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर उठे सवाल

यह घटना उन गंभीर सवालों को जन्म देती है जो आज के समाज को आत्ममंथन के लिए मजबूर करते हैं। क्या हम अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं? क्या किसी पर शक होने पर सार्वजनिक अपमान सही है, खासकर जब वह एक नाबालिग हो?

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस उम्र के बच्चों पर भावनात्मक दबाव का गहरा असर होता है। ऐसे में परिवार, स्कूल और समाज की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।

स्कूलों में नियमित काउंसलिंग सत्र अनिवार्य किए जाने चाहिए।बच्चों को उनके अधिकारों और भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता सिखाई जानी चाहिए।सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी व्यक्ति — विशेषकर बच्चों — को शर्मिंदा करना या बेइज्जत करना कानूनन अपराध माना जाना चाहिए।

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