“जुर्माने का संदेश तुरंत मिलता है, लेकिन गड्ढों ने जो बच्चे अनाथ किए—उनकी खबर किसे मिलती है?”

Khozmaster
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भारत में चालान बनाम गड्ढे: हाईटेक कैमरों के दौर में सड़क सुरक्षा पर बड़ा प्रश्नचिह्न

देशभर में ट्रैफिक व्यवस्था को आधुनिक बनाने के लिए सरकार ने हाईटेक कैमरों और डिजिटल सिस्टम का तेज़ी से विस्तार किया है। आज कैमरे इतनी बारीकी से वाहन की गति, नंबर प्लेट और सड़क नियमों के उल्लंघन को पकड़ लेते हैं कि कुछ ही सेकंड में चालान मोबाइल पर पहुंच जाता है।

लेकिन इन्हीं कैमरों को लेकर एक तीखी बहस उठी है—“भारत शायद दुनिया का एकमात्र देश है, जहाँ कैमरा गाड़ी को चालान करने में तो माहिर है, लेकिन उसी सड़क पर पड़े बड़े-बड़े गड्ढों को देखने में अंधा हो जाता है।”

यह टिप्पणी न सिर्फ व्यंग्य है, बल्कि करोड़ों नागरिकों की दुखती नस पर हाथ रखती है।

गड्ढों की अनदेखी — जनता की पीड़ा, शासन की परीक्षा

भारत में हर साल गड्ढों वाली सड़कों के कारण सैकड़ों दुर्घटनाएँ होती हैं। बारिश का मौसम आते ही अच्छी-खासी सड़कें भी खतरनाक जाल बन जाती हैं। कई शहरों में सड़कें इतनी जर्जर हो जाती हैं कि वाहन चलाना मानो जोखिम उठाने जैसा हो जाता है।

जनता का तर्क बेहद सीधा है—

जब कैमरे वाहन की छोटी सी गलती पकड़ लेते हैं, तो क्या वही तकनीक सड़क की खराब हालत को नहीं पहचान सकती?

तकनीक की ताकत—पर उसका अपूर्ण उपयोग

विशेषज्ञों का मत है कि आधुनिक एआई-आधारित कैमरों में यह क्षमता मौजूद है कि वे:

सड़क पर पड़े गड्ढों,

टूटी हुई सतह,

या खतरनाक मोड़ों की स्थिति का डेटा स्वचालित रूप से रिकॉर्ड कर सकें,

और तुरंत नगर निगम या संबंधित विभागों को अलर्ट भेज सकें।

लेकिन फिलहाल शहरों में इन कैमरों का उपयोग केवल चालान जारी करने तक सीमित है।

जनता की नाराज़गी — “सिर्फ जुर्माना नहीं, सुरक्षित सड़कें चाहिए”

चालानों की बढ़ती संख्या के बीच नागरिकों की नाराज़गी साफ दिखाई देती है। लोग सवाल कर रहे हैं—

क्या तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ राजस्व बढ़ाने के लिए हो रहा है?

क्या नागरिकों की सुरक्षा उतनी ही प्राथमिकता में है जितना चालान वसूली?

जब कैमरे इतने स्मार्ट हैं, तो सड़कें क्यों नहीं?

यह सवाल सीधे शासन और प्रशासन की जवाबदेही पर चोट करता है।

समाधान का रास्ता — तकनीक और जिम्मेदारी का संगम

स्मार्ट सिटी और आधुनिक तकनीक का सही उपयोग किया जाए तो भारत में सड़क सुरक्षा को एक नया स्तर मिल सकता है।

गड्ढों की स्वचालित पहचान और रियल-टाइम रिपोर्टिंग व्यवस्था लागू हो जाए, तो:

सड़कें समय पर मरम्मत हों,

दुर्घटनाएँ कम हों,

और नागरिकों का भरोसा बढ़े।

भारत ने डिजिटल ट्रैफिक प्रवर्तन में तो तेज़ी से प्रगति की है, लेकिन सड़क सुरक्षा में तकनीक का उपयोग अभी भी अधूरा है।

जनता का संदेश साफ है—

“कैमरे अगर हमारे चालान देख सकते हैं, तो हमारे गड्ढे भी देखें। सिर्फ दंड नहीं, सुरक्षित और सुगम सड़कें भी ज़रूरी हैं।”

यह बहस सिर्फ सड़क की नहीं, नागरिक सुरक्षा और शासन की प्राथमिकताओं की भी परीक्षा है।

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