पीएम मोदी 9 जून को लॉन्च करेंगे ‘ज्ञान भारतम् मिशन’: प्राचीन भारतीय पांडुलिपियों को संरक्षित करने की ऐतिहासिक पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 जून 2025 को ‘ज्ञान भारतम् मिशन’ नामक एक नए और व्यापक पांडुलिपि मिशन की शुरुआत करेंगे। इस मिशन का उद्देश्य भारत की एक करोड़ से अधिक प्राचीन पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण, डिजिटलीकरण और संरक्षण करना है, जिससे देश की समृद्ध बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को सहेजा जा सके।
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राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की पृष्ठभूमि
राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (National Manuscripts Mission – NMM) की शुरुआत वर्ष 2003 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के तहत की गई थी। अब तक, इस मिशन के तहत लगभग 52 लाख पांडुलिपियों का मेटाडेटा एकत्र किया गया है, लेकिन उनमें से केवल 1.3 लाख ही डिजिटल रूप से अपलोड की गई हैं और सिर्फ 70,000 पांडुलिपियाँ ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं।
इसकी प्रमुख वजह यह है कि भारत की लगभग 80% पांडुलिपियाँ निजी संग्रहकर्ताओं के पास हैं, जिससे उन्हें सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता है।
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बढ़ा हुआ बजट और नया ढांचा
वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में इस मिशन के लिए आवंटन को 3.5 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 60 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस राशि का उपयोग डिजिटलीकरण, संरक्षण और शोध के लिए किया जाएगा।
इसके अंतर्गत एक नई स्वायत्त संस्था बनाई जाएगी जो केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करेगी और भारत भर में फैले पांडुलिपियों के भंडार को एकत्र और डिजिटाइज करने का काम करेगी।
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मिशन के प्रमुख लक्ष्य
भारत में फैली एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का खोज, सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण।
दुर्लभ और नाजुक पांडुलिपियों का हाई-क्वालिटी डिजिटलीकरण।
एक राष्ट्रीय डिजिटल रिपॉजिटरी की स्थापना, जिससे शोधकर्ता और आम नागरिक इस ज्ञानधरोहर तक पहुंच सकें।
निजी संग्रहकर्ताओं को उनके संग्रह को सार्वजनिक रूप से साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना।
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सांस्कृतिक और शैक्षणिक महत्व
‘ज्ञान भारतम् मिशन’ भारत की प्राचीन विद्या और सांस्कृतिक विरासत को संजोने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। इससे पौराणिक ग्रंथों में निहित ज्ञान आने वाली पीढ़ियों को प्राप्त होगा और भारत की वैश्विक पहचान एक ज्ञान-प्रधान राष्ट्र के रूप में और भी मजबूत होगी।
इस मिशन से भारत की गौरवशाली पांडुलिपि परंपरा को न केवल संरक्षित किया जाएगा, बल्कि उसे शोधकर्ताओं, छात्रों और आम जनता के लिए सुलभ बनाकर “विकसित भारत” की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया जाएगा।
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