पुणे से नागपुर तक ट्रैफिक से बेहाल जनता: गडकरीजी खुद बने सिस्टम की विडंबना का हिस्सा

Khozmaster
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पुणे से नागपुर तक ट्रैफिक से बेहाल जनता: गडकरीजी खुद बने सिस्टम की विडंबना का हिस्सा

पुणे/नागपुर, 23 जून 2025 — सोमवार को केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री गडकरीजी को पुणे में प्रस्तावित अंडरग्राउंड सुरंग सड़क परियोजना का निरीक्षण रद्द करना पड़ा। वजह — शहर का बेहाल ट्रैफिक, जिसमें स्वयं मंत्रीजी का काफिला फंस गया।

यह विडंबना ही है कि जिस परियोजना का उद्देश्य ट्रैफिक से निजात दिलाना है, उसी का निरीक्षण देश के सड़क मंत्री ट्रैफिक में फंसने के कारण नहीं कर सके।

लेकिन समस्या केवल पुणे की नहीं है। नागपुर में भी वीआईपी मूवमेंट के कारण आम लोगों को लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पुणे और नागपुर, दोनों शहरों में एक साझा परेशानी है — ट्रैफिक प्रबंधन में आम आदमी की उपेक्षा।

पुणे में ट्रैफिक में फंसे गडकरीजी: समाधान देखने आए, पर समस्या ने रोक लिया

गडकरीजी सोमवार को पुणे की सुरंग परियोजना का निरीक्षण करने जा रहे थे, जो कि सिविल कोर्ट से एनएच-4 को जोड़ने वाली एक महत्त्वाकांक्षी योजना है। लेकिन जैसे ही उनका काफिला नल स्टॉप इलाके में पहुंचा, भारी ट्रैफिक जाम में फंस गया।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रैफिक में देर के कारण निरीक्षण रद्द कर दिया गया और गडकरीजी को वैकल्पिक मार्ग से आगे बढ़ना पड़ा।

यह घटना सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और लोगों ने तीखा व्यंग्य करते हुए कहा — “जिस सुरंग से ट्रैफिक का समाधान निकलना था, वहीं पहुंचने से मंत्रीजी को ट्रैफिक ने रोक दिया।”

नागपुर में भी हालात कम नहीं: 

ऐसा ही अनुभव नागपुर के पास मंसर में देखने को मिला, जब गडकरीजी एक सड़क उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे। उस समय ग्रामीण पुलिस ने रामटेक से आने वाले ट्रैफिक को एक लंबी अवधि तक रोके रखा, जिससे स्थानीय जनता को भारी असुविधा हुई।

गर्मी, धूल और इंतज़ार के बीच फंसे लोग जब नाराज़ हुए, तो एक पत्रकार ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी से सवाल किया कि जनता को इतनी देर क्यों रोका गया। जवाब मिला — “आप गडकरीजी से पूछिए।” पत्रकार का जवाब था — “गडकरीजी को कैसे पता होगा कि आपने ट्रैफिक कितनी देर रोकी? यह तो आपकी ज़िम्मेदारी है कि ट्रैफिक का प्रबंधन प्रभावी हो।”

इस संवाद ने उस सोच को उजागर कर दिया, जहां जवाबदेही नीचे से ऊपर नहीं, ऊपर से नीचे फेंकी जाती है।

नागपुर में हर वीकेंड ट्रैफिक से जूझते लोग

नागपुर में शनिवार और रविवार को वीआईपी मूवमेंट काफी अधिक होता है। गडकरीजी स्वयं यहां के सांसद हैं, और मुख्य मंत्री देवेंद्र फडणवीस यहां से विधायक, स्वाभाविक रूप से वे विभिन्न स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लेते हैं — स्कूल, संस्था, उद्घाटन, समारोह।

ट्रैफिक पुलिस दो घंटे पहले से “अलर्ट मोड” पर आ जाती है। जिन रास्तों से वीआईपी काफिला निकलना होता है, वहां पहले से तैनाती हो जाती है। यहां तक कि यदि किसी ने अपनी गाड़ी वैध पार्किंग में खड़ी की हो, और वह स्थान वीआईपी रूट में आ जाए, तो गाड़ी उठा ली जाती है और चालान थमा दिया जाता है।

सवाल ये है क्या नागपुर के नागरिकों को रोज़ ये अंदाज़ा लगाना चाहिए कि आज उनके रास्ते से कोई वीआईपी गुजरने वाला है?

सामान्य नागरिक क्यों बने व्यवस्था की कीमत चुकाने वाला?

जब ट्रैफिक रोका जाता है, असुविधा आम आदमी सहता है। वीआईपी को शायद पता भी नहीं चलता कि उनकी सुरक्षा और मूवमेंट के नाम पर कितने लोग एम्बुलेंस में, बस में, दफ्तर जाते समय या स्कूल छोड़ते वक्त परेशान हो रहे हैं।

गडकरीजी जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता शायद जानना भी चाहें कि जनता को कोई असुविधा न हो, लेकिन यदि ट्रैफिक विभाग और पुलिस ही यह जिम्मेदारी नहीं निभा रहे, तो इसका खामियाजा आम जनता  क्यों भुगते.

समाधान तब ही होगा, जब प्राथमिकता बदले

पुणे से नागपुर तक की तस्वीर एक जैसी है — आम आदमी को सूचना नहीं दी जाती, वैकल्पिक रूट नहीं बनाए जाते, पार्किंग नियमों को वीआईपी के नाम पर पलटा जाता है।

ट्रैफिक प्रबंधन को अगर वाकई सुचारु बनाना है, तो इसकी योजना आम नागरिक को केंद्र में रखकर बनानी होगी — न कि केवल वीआईपी रूट को क्लियर करने के लिए।

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