नागपुर की सरज़मीं पर सजी अदब की नायाब महफ़िल – इमरान प्रतापगढ़ी के लफ़्ज़ों ने बाँधा समां, नितिन गडकरी की सादगी को बताया ‘सियासत की मिसाल’
नागपुर : हज़रत बाबा ताजुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के 103वें सालाना उर्स के पावन अवसर पर ताजबाग शरीफ़ की रूहानी फिज़ाओं में अदब, तहज़ीब और मोहब्बत का अनोखा संगम देखने को मिला। भव्य ऑल इंडिया मुशायरे में देश के नामचीन शायरों ने अपनी शायरी के नूर से शाम को रोशन कर दिया।
महफ़िल का केंद्र बने मशहूर शायर और राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी, जिनके मंच पर आते ही तालियों और नारों की गूंज से माहौल सरोबार हो गया। उनकी हर ग़ज़ल और शेर पर श्रोता झूम उठे, और लफ़्ज़ों की यह जादूगरी देर रात तक महफ़िल को महकाती रही।

इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा –
“इलाहाबाद वो सरज़मीन है जहाँ गंगा और यमुना का संगम होता है, लेकिन आज नागपुर की यह धरती तहज़ीब, मज़हब और साहित्य के संगम का खूबसूरत मंजर पेश कर रही है। यह वीर शिवजी, बाबासाहब आंबेडकर और बाबा ताजुद्दीन की मिट्टी है, जिसमें मोहब्बत और यक़ीन की खुशबू रची-बसी है।”
उन्होंने भावुक अंदाज़ में कहा कि साहित्य के मंच से मिली जनता की मोहब्बत और दुआओं ने ही उन्हें संसद तक पहुँचाया। उन्होंने वादा किया कि राजनीति में आने के बावजूद वे हमेशा समाज की आवाज़ को बुलंद करते रहेंगे।
मंच से उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की विनम्रता और सादगी की खुलकर प्रशंसा करते हुए कहा –
“आज की सियासत में अगर किसी नेता में सबसे ख़ूबसूरत अंदाज़ में विनम्रता, सराफ़त और सादगी देखने को मिलती है, तो वह नितिन गडकरी जी में है। मैं दिल से उनका सलाम करता हूँ और उनकी शख़्सियत की तारीफ़ करता हूँ।”
महफ़िल में मशहर आफरीदी, आरिफ सैफई, शाइस्ता सना, मनिका दुबे, जुनैद अख्तर, बिलाल सहारनपुरी, हामिद भुसावली और समीर कबीर जैसे दिग्गज शायरों ने भी अपनी शायरी से समां बाँध दिया। कार्यक्रम की शानदार निज़ामत नदीम फर्रुख ने की।
इस मौके पर हज़रत बाबा ताजुद्दीन ट्रस्ट के अध्यक्ष प्यारे जिया खान, सचिव ताज अहमद राजा, उपाध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र जिचकार, ट्रस्टी हाजी फारूकभाई बावला, गजेंद्रपाल सिंह लोहिया, मुस्तफाभाई टोपीवाला, इमरान खान, रामटेक के सांसद श्यामकुमार बर्वे, पूर्व विधायक डॉ. वजाहत मिर्जा और प्रख्यात समाजसेवी इसराइल सेठ समेत कई गणमान्य व्यक्तित्व मौजूद रहे।
शायरों का दस्तारबंदी कर और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया गया।
यह मुशायरा सिर्फ़ अदब की महफ़िल नहीं रहा, बल्कि यह एक संदेश भी दे गया – कि जब लफ़्ज़ मोहब्बत और तहज़ीब का पैग़ाम दें, तो सियासत भी इंसानियत की ख़ूबसूरत मिसाल बन सकती है।
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